Tuesday, March 26, 2019

माधवजी पोतदार साहब







Jayant Potdar
आज के दिन ही पचास वर्ष पूर्व “महानुभावका अद्भुत दर्शन “ नामक ग्रन्थ का जन्म हुआ था l एक ऐसा ग्रन्थ जो परमसद्गुरु श्रीजी के शब्दों में “एकमेव अद्वितीय “ है ! जिसकी बराबरी सत्य धर्म के क्षेत्र में अब तक लिखे-छपे-प्रकाशित हुए चरित्र-ग्रंथों में से कोई भी न कर सका, न भविष्य में कोई कर सकेगा l यह ग्रन्थ याने स्वयं परमसद्गुरुने लिखा हुआ अपने प्रिय शिष्य श्री माधवजी पोतदारसाहब का जीवन चरित्र है – न भूतो न भविष्यति ऐसा ! उस पर लेखक के रूप में दिया हुआ मेरा नाम श्रीजी ने किया हुआ आध्यात्मिक विनोद है ! सम्पूर्ण सत्य धर्म साहित्य में यह इकलौता ग्रन्थ है जो “अद्भुत’ और “रहस्यमय” विषय-वस्तु से ओत-प्रोत है l स्वयं में रहस्यमय होते हुए भी अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी इसी ग्रन्थ के द्वारा हुआ l अनेक रहस्यों का उद्घाटन होना अभी बाकी है l इसी ग्रन्थ से दुनियावालों को पता चला :- -कि भगवान परशुराम से श्री जी का क्या सम्बन्ध है ? इससे पहले यह रहस्य सिर्फ गिने-चुने लोगों को ही मालूम था l श्रीजी ने इसे “राज-गुह्य” (परम-गोपनीय) रखने की सख्त ताकीद की थी l परन्तु इसका उद्घाटन उन्हें मुझसे ही करवाना था l -कि, बालप्पा मठ के मठाधीश होना तो सिर्फ एक मुखौटा था , श्री जी का जीवित-कार्य या जीवनोद्देश्य तो सत्य धर्म का पुनरुज्जीवन है ! तब तक श्री जी के सभी शिष्य-भक्त-अनुयायी यही समझते थे कि मठ की यानि दत्त-सम्प्रदाय की परंपरा जारी रखना और “हरे राम” जाप का प्रचार करना ही श्री जी का जन्म-हेतु है ! छोटे-बड़े अनेक लोग इसी काम में जी-जान से जुटे हुए थे l उन सब का भ्रम-निरास इस ग्रन्थ ने किया l -कि, परमसद्गुरु श्रीजी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, तीज-त्यौहार, सडी-गली धार्मिक या सामाजिक रूढ-परम्पराएँ नहीं, बल्कि एकमात्र सत्य-धर्म का आचरण ही परम-प्रिय है l हार-फूल से उनकी पूजा, उनकी चरण-पादुकाओं की पूजा, उनकी आरती, उनकी पोथी पढना या पारायण करना , उनका नाम-जप करना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं , बल्कि पोतदार साहब ने बताये तरीके से सत्य धर्म का आचरण करने वाला ही उनके करीब है उनका प्यारा है l -कि, परमसद्गुरु के प्राण-प्रिय सखा, शिष्य एवं अनुयायी केवल श्रीमान माधवजी पोतदार साहब हैं l श्री जी ने अपने समान श्रुति-पुनरुज्जीवन की प्रतिज्ञा ११ अक्टोबर १९५९ को श्री साहब से करवाई और श्री स्वामीसमर्थ तथा श्री परशुराम ने सशरीर मठ में आकर बताया कि अब सत्य-युग शुरू हुआ l १९८७ में समाधी लेने से कुछ दिनों पूर्व श्रीजी ने अपने निकटस्थ व्यक्ति से कहा था “ पोतदारसाहब के बाद (१९६० के बाद) ऐसा कोई नहीं मिला जिससे हम अपने मन की बात साझा कर सकें l” -कि, श्रुति-पुनरूज्जीवन-कार्य में अकेले पोतदारसाहब ही उनके सहकारी हैं, सेनापति हैं l बाकी सारे लोग इस सेनापति के मार्ग-दर्शन में लड़नेवाले रथी-महारथी या योद्धा मात्र हैं l आज भी पूरी दुनिया में श्री साहब द्वारा १९७४ की प्रचारक-सभा में किये दिशा-निर्देश के अनुसार ही सत्य-धर्म प्रचार-प्रसार का कार्य हो रहा है l -कि, आदेश भले ही परमसद्गुरु का हो, परन्तु सारी दुनिया को सत्य धर्म का उपदेश केवल पोतदारसाहब ने ही दिया है l स्वयं श्रीजी ने श्री साहब के आग्रह पर दो आहुतियों का अग्निहोत्र १९७३ में शुरू कर श्रीसाहब के जगदगुरू होने के अपने ही वचन को सत्य सिद्ध किया था l प्रत्येक अग्निहोत्र आचरणकर्ता सत्यधर्म-प्रवर्तक परमसद्गुरु के धर्मादेश का पालन सत्यधर्म उपदेष्टा श्रीमान पोतदारसाहब के उपदेश के अनुसार ही कर रहा है l
परमसद्गुरु ने मुझसे १९६८ में ही कहा था ,” जिस-जिस घर में यह ग्रन्थ जाएगा , वहां सत्य-धर्म अपने-आप पहुँच जाएगा l
आज इस महान ग्रन्थ की स्वर्ण-जयंती पर मेरा उस सद्गुरु-शक्ति को नमन जिनकी कामना थी कि श्री साहब के चरित्र का गुण-गान दुनिया की हर भाषा में होना चाहिए --- “ दुनिया को यह पता चलना चाहिए कि अग्निहोत्र किसने बताया है ! “ परमसद्गुरु का यह वाक्य मुझे यह आश्वासन देता है कि भविष्य में “अग्निहोत्र” और “श्री पोतदारसाहब” ये शब्द जब पर्यायवाची हो जायेंगे तभी अवतार के जंजाल से मुक्त सत्यधर्म प्रवर्तक परमसद्गुरु को दुनिया सही मायने में जान सकेगी l श्री साहब को जानना ही परमसद्गुरु को जानने का निर्भ्रांत मार्ग है ! नान्य पन्थाः विद्यते अयनाय – और कोई मार्ग नहीं ! श्री जी के अनुसार श्री माधवजी पोतदारसाहब और सत्य-धर्म एक ही हैं ,दो नहीं ! --- जयन्त पोतदार .
(चित्र : १९७३ के मानवधर्म सम्मलेन के अंतिम दिन 11 मार्च को भोपाल के प्रमुख मार्ग पर विजय जुलूस का नेतृत्व करते हुए श्री साहब l)

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