जगत के सभी जाने-अनजाने अग्निहोत्र-आचरणकर्ताओं को ५१ वी अग्निहोत्र-जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ! अग्निहोत्र विधि के पुनर्जन्मदाता श्रीमान माधवजी पोतदार साहब को शत-शत प्रणाम ! अग्निहोत्र के प्रथम आचरणकर्ता श्री हीरालालजी शर्मा का पुण्य स्मरण !
इस कार्य का मूल है अक्कलकोट निवासी सत्य धर्म प्रवर्तक परमसद्गुरु श्री गजानन महाराजश्री का “सप्तश्लोकी (धर्मादेश)”. यह परमसद्गुरु ने १९४४ में दिया था . श्री जी के किसी भी शिष्य को यह १९५७ तक समझ में नहीं आया . तब १९५७ में श्रीजी ने अपने श्रीमान पोतदार साहब से इसे १३ साल बाद गुमनामी से निकलवाया. उनके आदेश से श्री साहब ने “सप्तश्लोकी (धर्मादेश) को हिंदी अनुवाद व् स्पष्टीकरण सहित छापा. इससे दुनिया को पता चला की श्रीजी का धर्मादेश क्या है. इसी धर्मादेश के सातवे श्लोक पर श्री साहब का सारा साहित्य आधारित है . इस श्लोक के केवल एक शब्द “यज्ञ” का विस्तार आज का सारा अग्निहोत्र प्रचार प्रसार है .धन्य हैं साहब . उन्होंने “धर्म-पाठ” का उपदेश देकर दुनिया को बताया कि श्रीजी क्या हैं, कौन हैं और उनका कार्य क्या है ? कितनी विचित्र बात है कि अक्कलकोट से १४०० किलोमीटर दूर भोपाल से श्रीसाहब द्वारा श्रीजी का जीवित कार्य शुरू हुआ ! साहब द्वारा अग्निहोत्र को प्रतिज्ञा पूर्ती का साधन चुना गया इसके निमित्त बने प्रथम अग्निहोत्र आचरणकर्ता श्री हीरालाल शर्मा . सरपंच, बैरागढ़ कलां ग्राम ,जिला भोपाल . इसी २२ फरवरी की शाम को १९६३ में शर्माजी ने अपने घर अग्निहोत्र शुरू किया था . इसी बैरागढ़ गाँव से पांच साल बाद १९६८ में अग्निहोत्र प्रचार का कार्य शुरू हुआ और प्रथम अग्निहोत्र प्रचारक बनने का अवसर मिला श्री शीतलप्रसाद मिश्र को . धन्य हैं वे साहब के सभी सिपाही जिन्होंने तमाम उपेक्षा, कष्ट और अभावों के बावजूद इस चिगारी को जन-जन घर-घर तक पहुंचा कर मिसाल कायम की . ५१ साल पहले उत्पन्न यह चिंगारी आज धरती पर घर घर में प्रकाशित होती जा रही है .
सत्य धर्म प्रवर्तक और सत्य धर्म संदेष्टi दोनों का स्वप्न जल्द से जल्द साकार हो, यही हमारे प्रयत्नों की पराकाष्ठा हो .
सत्य धर्म प्रवर्तक और सत्य धर्म संदेष्टi दोनों का स्वप्न जल्द से जल्द साकार हो, यही हमारे प्रयत्नों की पराकाष्ठा हो .
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