सभी मान0 सदस्य,
जैविक खेती एक अच्छा विषय है और उपयोगी भी यह बात सही है कि किसी भी प्रकार की खेती अगर मनुष्य को करनी हो तो सबसे पहले यह ख्याल रखना होगा कि प्रकृति का कोई भी नुकसान नही हो । हमारे द्वारा प्रकृति के बीच सही सामजस्य जब तक स्थापित नही होगा जमीन, वातावरण और जल अशुद्धता की ओर बढ़ता चला जायेगा इसलिए अब खेती करने में और मुख्यतः छत की खेती करने में हमें यह ध्यान रखना होगा कि हमारे आस पास का वातावरण अनुकूल बना रहे स्वच्छ बना रहे अगर हम खेती करने में वातावरण का ध्यान भी रखें तो हम 100 प्रतिशत लाभान्वित हो सकतें है । खेती में भी और मनुष्य जीवन में भी दो बातें महत्वपूर्ण है 1. कि पौष्टिक वातावरण हो और 2. जहां भी आप खेती करें ऊर्जा का प्रवाह भरपूर हो ताकि आप की खेती के आस पास जीव जंतुओं के जीवन की संभावनाएं बनी रहें । मेरे विचार से खेती वह फलदायक है जहां आपके छत, आंगन और खेत में भी चिड़िया, मधुमखिया, केचुएं आदि जीव जो आपकी खेती के लिए लाभदायक है वे शुद्ध वातावरण पाएं और उनमें ऊर्जा का प्रवाह भरपूर हो ताकि वे आपके लिए अधिक से अधिक काम कर सके । फिर अगर आप प्रकृति से सामंजस्य बनाना चाहते है तो आपको प्रकृति के प्रत्येक जीव के लिए शुद्ध वातावरण उन्हें देना पड़ेगा । प्रकृति में शुद्धता का वातावरण अब हमें बनाना पड़ेगा और देर करेंगे तो हमारे आस पास कोई नही रहेगा फिर वीराने में रहने की तैयारी करनी होगी । इसका सबसे सरल और आसान उपाय है कि हम अपने घर मे, बगीचे में, खेतो में अग्निहोत्र का आचरण करें । नित्य अग्निहोत्र और उसकी भस्म यह खेत की मिट्टी के लिए पर्याप्त है ऐसा कानपुर के दो वैज्ञानिक डॉ0 रामाश्रय मिश्रा और डॉ0 श्रीवास्तव (pro. Of plant breeding and genetics ) इन्होंने करके देखा है और सकारात्मक परिणाम मिले है और भी कोई अगर इसे दोबारा करना चाहे तो कर सकते हैं उसे बेहतर परिणाम मिलेंगे । अग्निहोत्र विधि जाती पाती से अलग मनुष्यता की ओर ले जाता है अग्निहोत्र यह साधन है माध्यम है शांति की ओर जाने का मार्ग है और खेती के लिए किसान का सबसे बड़ा मददगार है अग्निहोत्र किसान को शारीरिक रूप से स्वस्थ भी करता है और उसके खेत को उन्नत भी करता है । वैसे देखा जाए तो खेती ही नही बल्कि सारे पंचतत्व ईश्वर ने शोषण के लिए नही बनाये इसलिए जब जब हम अपनी आदते शोषण की ऒर ले जाएंगे उस समय प्रकृति उसका विरोध करेगी प्रकृति का वह विरोध हमे कष्ट देगा । इसलिए आज नही तो कल प्रत्येक मनुष्य को उसका उत्तरदाईत्व पूरा करना होगा । अब वातावरण का स्वछता अभियान चलाना होगा यही नियति है ।
agnihotrarejuvenatebypotdarsahab
Tuesday, October 15, 2019
जैविक खेती
Tuesday, March 26, 2019
माधवजी पोतदार साहब
Jayant Potdar
आज के दिन ही पचास वर्ष पूर्व “महानुभावका अद्भुत दर्शन “ नामक ग्रन्थ का जन्म हुआ था l एक ऐसा ग्रन्थ जो परमसद्गुरु श्रीजी के शब्दों में “एकमेव अद्वितीय “ है ! जिसकी बराबरी सत्य धर्म के क्षेत्र में अब तक लिखे-छपे-प्रकाशित हुए चरित्र-ग्रंथों में से कोई भी न कर सका, न भविष्य में कोई कर सकेगा l यह ग्रन्थ याने स्वयं परमसद्गुरुने लिखा हुआ अपने प्रिय शिष्य श्री माधवजी पोतदारसाहब का जीवन चरित्र है – न भूतो न भविष्यति ऐसा ! उस पर लेखक के रूप में दिया हुआ मेरा नाम श्रीजी ने किया हुआ आध्यात्मिक विनोद है ! सम्पूर्ण सत्य धर्म साहित्य में यह इकलौता ग्रन्थ है जो “अद्भुत’ और “रहस्यमय” विषय-वस्तु से ओत-प्रोत है l स्वयं में रहस्यमय होते हुए भी अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी इसी ग्रन्थ के द्वारा हुआ l अनेक रहस्यों का उद्घाटन होना अभी बाकी है l इसी ग्रन्थ से दुनियावालों को पता चला :- -कि भगवान परशुराम से श्री जी का क्या सम्बन्ध है ? इससे पहले यह रहस्य सिर्फ गिने-चुने लोगों को ही मालूम था l श्रीजी ने इसे “राज-गुह्य” (परम-गोपनीय) रखने की सख्त ताकीद की थी l परन्तु इसका उद्घाटन उन्हें मुझसे ही करवाना था l -कि, बालप्पा मठ के मठाधीश होना तो सिर्फ एक मुखौटा था , श्री जी का जीवित-कार्य या जीवनोद्देश्य तो सत्य धर्म का पुनरुज्जीवन है ! तब तक श्री जी के सभी शिष्य-भक्त-अनुयायी यही समझते थे कि मठ की यानि दत्त-सम्प्रदाय की परंपरा जारी रखना और “हरे राम” जाप का प्रचार करना ही श्री जी का जन्म-हेतु है ! छोटे-बड़े अनेक लोग इसी काम में जी-जान से जुटे हुए थे l उन सब का भ्रम-निरास इस ग्रन्थ ने किया l -कि, परमसद्गुरु श्रीजी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास, तीज-त्यौहार, सडी-गली धार्मिक या सामाजिक रूढ-परम्पराएँ नहीं, बल्कि एकमात्र सत्य-धर्म का आचरण ही परम-प्रिय है l हार-फूल से उनकी पूजा, उनकी चरण-पादुकाओं की पूजा, उनकी आरती, उनकी पोथी पढना या पारायण करना , उनका नाम-जप करना उन्हें बिलकुल पसंद नहीं , बल्कि पोतदार साहब ने बताये तरीके से सत्य धर्म का आचरण करने वाला ही उनके करीब है उनका प्यारा है l -कि, परमसद्गुरु के प्राण-प्रिय सखा, शिष्य एवं अनुयायी केवल श्रीमान माधवजी पोतदार साहब हैं l श्री जी ने अपने समान श्रुति-पुनरुज्जीवन की प्रतिज्ञा ११ अक्टोबर १९५९ को श्री साहब से करवाई और श्री स्वामीसमर्थ तथा श्री परशुराम ने सशरीर मठ में आकर बताया कि अब सत्य-युग शुरू हुआ l १९८७ में समाधी लेने से कुछ दिनों पूर्व श्रीजी ने अपने निकटस्थ व्यक्ति से कहा था “ पोतदारसाहब के बाद (१९६० के बाद) ऐसा कोई नहीं मिला जिससे हम अपने मन की बात साझा कर सकें l” -कि, श्रुति-पुनरूज्जीवन-कार्य में अकेले पोतदारसाहब ही उनके सहकारी हैं, सेनापति हैं l बाकी सारे लोग इस सेनापति के मार्ग-दर्शन में लड़नेवाले रथी-महारथी या योद्धा मात्र हैं l आज भी पूरी दुनिया में श्री साहब द्वारा १९७४ की प्रचारक-सभा में किये दिशा-निर्देश के अनुसार ही सत्य-धर्म प्रचार-प्रसार का कार्य हो रहा है l -कि, आदेश भले ही परमसद्गुरु का हो, परन्तु सारी दुनिया को सत्य धर्म का उपदेश केवल पोतदारसाहब ने ही दिया है l स्वयं श्रीजी ने श्री साहब के आग्रह पर दो आहुतियों का अग्निहोत्र १९७३ में शुरू कर श्रीसाहब के जगदगुरू होने के अपने ही वचन को सत्य सिद्ध किया था l प्रत्येक अग्निहोत्र आचरणकर्ता सत्यधर्म-प्रवर्तक परमसद्गुरु के धर्मादेश का पालन सत्यधर्म उपदेष्टा श्रीमान पोतदारसाहब के उपदेश के अनुसार ही कर रहा है l
परमसद्गुरु ने मुझसे १९६८ में ही कहा था ,” जिस-जिस घर में यह ग्रन्थ जाएगा , वहां सत्य-धर्म अपने-आप पहुँच जाएगा l
आज इस महान ग्रन्थ की स्वर्ण-जयंती पर मेरा उस सद्गुरु-शक्ति को नमन जिनकी कामना थी कि श्री साहब के चरित्र का गुण-गान दुनिया की हर भाषा में होना चाहिए --- “ दुनिया को यह पता चलना चाहिए कि अग्निहोत्र किसने बताया है ! “ परमसद्गुरु का यह वाक्य मुझे यह आश्वासन देता है कि भविष्य में “अग्निहोत्र” और “श्री पोतदारसाहब” ये शब्द जब पर्यायवाची हो जायेंगे तभी अवतार के जंजाल से मुक्त सत्यधर्म प्रवर्तक परमसद्गुरु को दुनिया सही मायने में जान सकेगी l श्री साहब को जानना ही परमसद्गुरु को जानने का निर्भ्रांत मार्ग है ! नान्य पन्थाः विद्यते अयनाय – और कोई मार्ग नहीं ! श्री जी के अनुसार श्री माधवजी पोतदारसाहब और सत्य-धर्म एक ही हैं ,दो नहीं ! --- जयन्त पोतदार .
परमसद्गुरु ने मुझसे १९६८ में ही कहा था ,” जिस-जिस घर में यह ग्रन्थ जाएगा , वहां सत्य-धर्म अपने-आप पहुँच जाएगा l
आज इस महान ग्रन्थ की स्वर्ण-जयंती पर मेरा उस सद्गुरु-शक्ति को नमन जिनकी कामना थी कि श्री साहब के चरित्र का गुण-गान दुनिया की हर भाषा में होना चाहिए --- “ दुनिया को यह पता चलना चाहिए कि अग्निहोत्र किसने बताया है ! “ परमसद्गुरु का यह वाक्य मुझे यह आश्वासन देता है कि भविष्य में “अग्निहोत्र” और “श्री पोतदारसाहब” ये शब्द जब पर्यायवाची हो जायेंगे तभी अवतार के जंजाल से मुक्त सत्यधर्म प्रवर्तक परमसद्गुरु को दुनिया सही मायने में जान सकेगी l श्री साहब को जानना ही परमसद्गुरु को जानने का निर्भ्रांत मार्ग है ! नान्य पन्थाः विद्यते अयनाय – और कोई मार्ग नहीं ! श्री जी के अनुसार श्री माधवजी पोतदारसाहब और सत्य-धर्म एक ही हैं ,दो नहीं ! --- जयन्त पोतदार .
(चित्र : १९७३ के मानवधर्म सम्मलेन के अंतिम दिन 11 मार्च को भोपाल के प्रमुख मार्ग पर विजय जुलूस का नेतृत्व करते हुए श्री साहब l)
पथ प्रदर्शक महानुभाव श्री माधव जी पॊतदार "साहब"....
ऒम श्री साहब
पथ प्रदर्शक महानुभाव श्री माधव जी पॊतदार "साहब" हम सभी अग्निहॊत्र आचरणकर्ताऒ कॆ लियॆ हमॆशा परम श्रद्दॆय रहॆंगॆ पूज्यनीय रहॆगॆ ! श्री साहब एक साधारण मनुष्य थॆ श्री साहब नॆ अपनॆ जीवन मॆं कभी सॊचा नही था कि श्रुति पुनरुज्जीवन सा असाधारण कार्य उन्हॆ करना हॊगा ! श्री साहब श्री जी सॆ प्रभावित हुए और उन्हॊनॆ श्री जी कॆ कहॆ अनुसार अपनॆ आप को ढालना शुरु किया और एक इतिहास रच डाला ! मै यह समझता हू कि साहब नॆ इस कारण श्री जी का अनुसरण करना शुरु किया क्यॊकि जब वॆ पहली बार श्री जी सॆ मिलॆ तब उन्हॊनॆ श्री जी कॊ बडी ही मस्ती और आनंद मॆ दॆखा और यही दॆखकर श्री साहब कॊ यह महसूस हुआ कि यॆ आनंद वॆ भी पा सकतॆ है पर कैसॆ पाना है यह उन्हॆ ग्यात न था ! श्री साहब श्री जी सॆ उस आनंद की खॊज सॆ मिलतॆ गयॆ और समय कॆ चलतॆ श्री साहब एक महान कार्य कर पायॆ ! इस सृष्टि पर जब भी प्रकृति का नियम डावाडॊल हुआ है ईश्वर नॆ नर और नारायण का रूप धर कर मनुष्य जाति का दुख क्लॆष दूर् किया है और मनुष्य जाति कॊ सही मार्ग यनि सत् पथ दिखाया है ! इस बार भी श्री जी और श्री साहब नॆ यही कार्य किया और एक गुरु और एक शिष्य बनकर इस दुनियां कॊ अग्निहॊत्र जैसा अस्त्र दिया ! हम सभी साहब कॆ सैनिक इस बात का समर्थन करतॆ है और उन दॊनॊ कॆ प्रति नतमस्तक हॊतॆ जिन्हॊनॆ एक बार पुन: मनुष्य जाति का रक्षण करनॆ मॆं अपना महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ! हम सभी उनकॆ इस कार्य कॆ लियॆ पूरा पूरा धन्यवाद भी नही दॆ सकतॆ क्यॊकि ऎसा करनॆ की हमारी लायकी नही है ! आनॆ वाली सभी पीढियां उनकॆ इस कार्य कॆ लियॆ उनका आभार प्रकट करॆंगी ! यह इतिहास है ! आज साहब कॆ नाम कॊ जाननॆ समझनॆ का समय है भलॆ ही साहब का नाम उजागर नही है और दुनियां उन्हॆ उनका हक दॆ चाहॆ नही दॆ पर ईश्वर शक्ति नॆ उन्हॆ उनका पूरा हक दिया है ! आनॆ वालॆ समय मॆं इस पुनरुज्जीवनकर्ता कॊ दुनिया पहचानॆगी,समझॆगी और नतमस्तक हॊगी ! आज अग्निहॊत्र आचरणकर्ताऒं मॆं भी अगर "परमसगुरु" और "म0अ0द0" इस पुस्तक कॆ माध्यम सॆ इस गुरु शिष्य की जॊडी कॊ समझा जा सकता है ! यॆ दॊनॊ एक है ! "परमसद्गुरु" पुस्तक कॆ माध्यम सॆ दुनियां कॊ श्री जी का स्वरुप जाननॆ कॊ मिला ! दुनियां नॆ यह जाना कि सद्गुरु कॆ रुप मॆ हमॆ श्री जी कॊ कैसॆ मानना चाहियॆ ! "परमसद्गुरु" पुस्तक सॆ द्वारा यह जाननॆ कॊ मिलता है कि श्री जी नॆ साहब कॊ कभी भी पूजा आदि कॆ चक्कर मॆं नही उलझाया ! पूरॆ घटनाक्रम मॆ गुरु नॆ अपनॆ चहॆतॆ शिष्य की मनॊदशा कॊ यथावत बनायॆ रखा ! साहब नॆ श्री जी का बताया मार्ग अपनाकर उच्च श्रॆणी का दर्जा हासिल किया ! यह निश्चित है कुछ भी सीखनॆ कॆ लियॆ या नौकरी पानॆ कॆ लियॆ नर्सरी सॆ लॆकर पी0एच)डी0 जैसी डिग्रियां पानॆ कॆ लियॆ क्रम दर क्रम सारी परिक्षायॆ पास करनी पडती है और उच्च श्रॆणी का दर्जा हासिल करना पडता है तभी अच्छा पद मिलता है, तनख्वाह मिलती है ! श्री साहब भी महान कार्य कर गयॆ और वह था अग्निहॊत्र का पुनरुज्जीवन और अग्निहॊत्र का प्रचार ! अपनॆ गुरु कॆ समक्ष उन सारी परिक्षाऒं कॊ पास किया और अपनॆ गुरु कॆ समकक्ष आयॆ ! इस दुनियां मॆं प्रत्यॆक कॊ यह अधिकार है कि वह अपनी मॆहनत और दम कॆ बलबूतॆ पर आगॆ बढॆ और परम पद प्राप्त करॆ ! साहब नॆ अपनॆ जीवन मॆं पैसा भी खूब कमाया और जीवन कॆ प्रत्यॆक क्षण का आनन्द भी खूब लिया ! सबसॆ बडी बात तॊ यह कि अपना सब कुछ उन्हॊनॆ उस समय त्यागा जब उन्हॆ किसी भी चीज की कॊई कमी नही थी ! गरीबी का और कष्ट का जीवन बिताया सिर्फ अपनॆ कार्य कॆ लियॆ, अपना सब कुछ न्यॊछावर किया कॆवल अपनॆ कार्य कॆ लियॆ ! जब श्री जी साहब सॆ मिलॆ तब उन्हॊनॆ श्री साहब सॆ कहा था कि इतनॆ वर्षॊं सॆ हम जिसकी राह दॆख रहॆ थॆ वह अब आया है ! इसका मतयब ही यही है कि यह कार्य करनॆ कॆ लियॆ श्री जी नॆ एक ही व्यक्ति कॊ चुना और वह थॆ "श्री साहब" और कॊई नही ! साहब नॆ श्री जी का चहॆता बनना अपनॆ बल बूतॆ पर हासिल किया था यह श्री साहब की खुद की कमाई थी जिसॆ उन्हॊनॆ बिना किसी एवज कॆ दुनियां कॊ दिया !
Shri sahab
ऒम श्री साहब
इस 1 ऒ 2 अक्टॊबर 2015 कॊ ,ऎसॆ महान और जीवट व्यक्तित्व की प्रतिमुर्ती का यानि महानुभाव श्रीमान माधवजी पॊतदार जिन्हॆ हम प्यार सॆ श्री साहब इस नाम सॆ पुकारतॆ है, का 100 वां जन्म वर्ष है ! श्री साहब का नाम और उनकॆ कार्य कॆ बारॆ मॆं अग्निहॊत्र आचरणकर्ता भी बहुत कम जानतॆ है ! महानुभाव का अद्भुत दर्शन, युगप्रवर्तक और श्री साहब जैसी पुस्तकॊ कॊ पढनॆ कॆ बाद भी साधारण मनुष्य उनका कॆवल चरित्र ही पढ पाता है ! यॆ पुस्तकॆ गुरु और शिष्य कॆ अनूठॆ प्रॆम संबंध का जीता जागता उद्धारण है ! आज विश्व कॆ कॊनॆ कॊनॆ मॆ कई लॊग अग्निहॊत्र का आचरण कर रहॆ है ! वॆ भी इस महान यॊद्धा सॆ कम हि परिचित हॊगॆ ! यह अग्निहॊत्र श्री साहब द्वारा पुनरुज्जीवित किया गया था ! इस अग्निहॊत्र कॊ अस्तित्व मॆं लानॆ कॆ लियॆ श्री साहब नॆ कठिन परिक्षा दी और इस विधि पर अनॆक प्रयॊग कियॆ तब इस अग्निहॊत्र कॊ जन सामान्य कॆ कल्याण कॆ लियॆ प्रकट किया ! हमारा बहुत बडा भाग्य है कि ऎसॆ महान यॊद्धा का हम सभी आगामी 1 अक्टॊबर कॊ जन्म दिवस मना रहॆ है ! हमारा पूरा प्रयास हॊना चाहियॆ कि हम अग्निहॊत्र कॆ प्रचार द्वारा, अग्निहॊत्र आचरण द्वारा श्री साहब का व्यक्तित्व लॊगॊ कॆ सामनॆ प्रस्तुत कर सकॆ ! अग्निहॊत्र की आज आवश्यकता है क्यॊकि बहुत सारी मानसिक और शारीरिक समस्यायॆ सभी वर्ग कॆ लॊगॊ मॆं , खासकर बच्चॊं मॆं दॆखनॆ मॆं आ रही है ! आज सवाल सिर्फ जिंदा रहनॆ का है और वह भी सकारात्मक रुप सॆ ! अग्निहॊत्र इसमॆ शत प्रतिशत प्रभावकारी हॊता है ! अग्निहॊत्र प्रायॊगिक हॊनॆ के साथ साथ अनुभव का भी विषय है ! अनुभव करकॆ दॆखॆ कि आपकॆ जीवन मॆं कैसॆ साहब का बताया अग्निहॊत्र परिवर्तन लाता है ! मै इस आगामी कार्यक्रम स्वागत करता हू उन सभी जानॆ अंञानॆ आचरण्कर्ताऒ का जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप सॆ साहब का मार्ग स्वीकार चुकॆ हॊ या सत्य कॆ, यानि श्री साहब कॆ पथ पर अग्रसर हॊना चाह्तॆ हॊं !
धन्यवाद
अग्निहोत्र-जयंती
जगत के सभी जाने-अनजाने अग्निहोत्र-आचरणकर्ताओं को ५१ वी अग्निहोत्र-जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं ! अग्निहोत्र विधि के पुनर्जन्मदाता श्रीमान माधवजी पोतदार साहब को शत-शत प्रणाम ! अग्निहोत्र के प्रथम आचरणकर्ता श्री हीरालालजी शर्मा का पुण्य स्मरण !
इस कार्य का मूल है अक्कलकोट निवासी सत्य धर्म प्रवर्तक परमसद्गुरु श्री गजानन महाराजश्री का “सप्तश्लोकी (धर्मादेश)”. यह परमसद्गुरु ने १९४४ में दिया था . श्री जी के किसी भी शिष्य को यह १९५७ तक समझ में नहीं आया . तब १९५७ में श्रीजी ने अपने श्रीमान पोतदार साहब से इसे १३ साल बाद गुमनामी से निकलवाया. उनके आदेश से श्री साहब ने “सप्तश्लोकी (धर्मादेश) को हिंदी अनुवाद व् स्पष्टीकरण सहित छापा. इससे दुनिया को पता चला की श्रीजी का धर्मादेश क्या है. इसी धर्मादेश के सातवे श्लोक पर श्री साहब का सारा साहित्य आधारित है . इस श्लोक के केवल एक शब्द “यज्ञ” का विस्तार आज का सारा अग्निहोत्र प्रचार प्रसार है .धन्य हैं साहब . उन्होंने “धर्म-पाठ” का उपदेश देकर दुनिया को बताया कि श्रीजी क्या हैं, कौन हैं और उनका कार्य क्या है ? कितनी विचित्र बात है कि अक्कलकोट से १४०० किलोमीटर दूर भोपाल से श्रीसाहब द्वारा श्रीजी का जीवित कार्य शुरू हुआ ! साहब द्वारा अग्निहोत्र को प्रतिज्ञा पूर्ती का साधन चुना गया इसके निमित्त बने प्रथम अग्निहोत्र आचरणकर्ता श्री हीरालाल शर्मा . सरपंच, बैरागढ़ कलां ग्राम ,जिला भोपाल . इसी २२ फरवरी की शाम को १९६३ में शर्माजी ने अपने घर अग्निहोत्र शुरू किया था . इसी बैरागढ़ गाँव से पांच साल बाद १९६८ में अग्निहोत्र प्रचार का कार्य शुरू हुआ और प्रथम अग्निहोत्र प्रचारक बनने का अवसर मिला श्री शीतलप्रसाद मिश्र को . धन्य हैं वे साहब के सभी सिपाही जिन्होंने तमाम उपेक्षा, कष्ट और अभावों के बावजूद इस चिगारी को जन-जन घर-घर तक पहुंचा कर मिसाल कायम की . ५१ साल पहले उत्पन्न यह चिंगारी आज धरती पर घर घर में प्रकाशित होती जा रही है .
सत्य धर्म प्रवर्तक और सत्य धर्म संदेष्टi दोनों का स्वप्न जल्द से जल्द साकार हो, यही हमारे प्रयत्नों की पराकाष्ठा हो .
सत्य धर्म प्रवर्तक और सत्य धर्म संदेष्टi दोनों का स्वप्न जल्द से जल्द साकार हो, यही हमारे प्रयत्नों की पराकाष्ठा हो .
om shree sahab
ऒम श्री साहब,
यह श्री साहब् यानि महानुभाव श्रीमान माधवजी पॊतदार साहब का जन्म शताब्दि वर्ष है और इस वर्ष मॆं साहब कॆ सभी माननॆ वालॊ तथा अग्निहॊत्र कॊ जाननॆ वालॊ व नयॆ लॊगॊ कॆ बीच श्री साहब का नाम पहुचॆ यही इस ग्रुप का सार्थक प्रयास है ! यही हमारी इच्छा भी है ! प्यारॆ मित्रॊ, मुझॆ यहां पर एक बात याद आई इस कारण मै उसॆ आप सभी कॆ समक्ष विस्तारित करना चाहता हू ! यह तॊ आप सभी श्री साहब कॊ माननॆ वालॆ जानतॆ ही है और निश्चित रुप सॆ उनकॆ साहित्य कॆ माध्यम सॆ पढा ही हॊगा कि श्री साहब एक लम्बी कालावधि तक कई नौकरियां की, उसमॆं जी जान सॆ जुडकर उस मिल या फैक्ट्री कॊ बदतर हालत सॆ बढिया हालत मॆं यानि सही स्थिति मॆं लाया और जब वह मिल या फैक्ट्री चलनॆ लगती तॊ कुछ न कुछ ऎसा हॊ जाता जिससॆ साहब कॊ वह नौकरी छॊडनी पडती और फिर वही सिलसिला शुरु हॊता यानि नई नौकरी ढूंढनॆ का ! हर जगह यही हालात थॆ कि साहब कॆ श्रम का मूल्य उन्हॆ नौकरी छॊडकर चुकाना पडा ! श्री साहब वैसॆ किसी पर भरॊसा नही करतॆ थॆ पर ऎक बार उस व्यक्ति पर विश्वास कर लॆनॆ पर वॆ उसपर कभी अविश्वास या शंका नही करतॆ थॆ भलॆ ही वह व्यक्ति विश्वासघाती बन जायॆ या उसकॆ मन मॆं खॊट पैदा हॊ जायॆ, श्री साहब आंखॆ मूंद कर विश्वास कर लॆतॆ थॆ ! श्री साहब कॊ पैसॆ सॆ ज्यादा मनुष्य की कीमत थी ! उनकॆ जीवन मॆं मनुष्यता सॆ बढकर कुछ नही रहा ! अपनॆ जीवन कॆ साहब कॆ कुछ नियम थॆ जैसॆ जिस कार्य कॊ हाथ मॆं लॆना उसॆ पूर्ण हॊनॆ तक उस कार्य कॊ करतॆ रहना, दियॆ हुए वचन कॊ किसी भी कीमत पर पूर्ण करना,ईमान्दार, लगन ! श्री साहब नॆ अपनॆ जीवन मॆं किसो सॆ कुछ भी उधार नही लिया जॊ कुछ कमाया अपनॆ बल बूतॆ पर यही सारी बातॆ महानुभाव का अद्भुत दर्शन मॆं चरितार्थ हॊती है ! अग्निहॊत्र का पुनरुज्जीवन करना यह पुर्ण रूप सॆ साहब की अपनी मॆहनत थी और जॊ साहब कॆ जीवन मॆं हमॆशा हॊता आया वही हुआ इस कार्य यानि श्रुति पुनरुज्जीवन कॆ कार्य मॆ उनकी सारी मॆहनत,परिश्रम, लगन का परिणाम उन्हॆ यही मिला कि यह श्रॆय दुसरॊ द्वारा छीन लिया गया ! वॆ अपनॆ जीवन कॆ अंतकाल मॆं अगर निराश हुए और दुखी हुए तॊ सिर्फ और सिर्फ इसी कारण सॆ!
मित्रॊ, आज इतनॆ वर्षॊं बाद भी वही आलम है कि साहब का नाम लॆनॆ पर वाद विवाद सी स्थिति उत्पन्न हॊ जाती है ! आज भी हमॆं वही सिद्ध करना पड रहा है जॊ सच है, जॊ हॊ चुका है ! किसी नयॆ व्यक्ति कॆ लियॆ यह आज भी एक बहुत बडा प्रश्न है कि अग्निहॊत्र का पुनरुज्जीवन करनॆ वालॆ कौन है ! अनॆकॊ भ्रामक पुस्तकॆ उपलब्ध है जिसकॆ द्वारा बॆचारा पाठक भ्रम कॆ जंजाल मॆं फस जाता है ! मुझॆ आज हसी भी आती है और दया भी कि,साहब कॆ विरॊधी अपनॆ जीवन का अमुल्य समय सिर्फ इस बात कॊ लॆकर गवातॆ है कि श्री साहब नॆ अग्निहॊत्र का पुनरुज्जीवन कदापि नही किया ! ऎसी अद्भुत गुरु शिष्य की जॊडी का हास परिहास करतॆ है जॊ अग्निहॊत्र कॆ पुनरुज्जीवन का आधार है और सच मायनॊ मॆं इतिहास ! सच मॆ हमॆं इस बात का दुख है कि जॊ सच है उस इतिहास कॊ बार बार हमॆं आज सच सिद्ध करना पड रहा है सिर्फ अपनॆ चहॆतॆ यानि माधवजी कॆ लियॆ !
हॆ मॆरॆ ईश्वर,,,,,,,,,,,!
By Jayantji
Jayant Potdar जिन्हें त्रेताग्निविस्तार अग्निहोत्र, आर्यसमाजी अग्निहोत्र, और श्रुति पुनरुज्जीवन कार्य के अंतर्गत श्री साहबने बताये अग्निहोत्र में कोई फर्क नज़र नहीं आता उन्हें क्या कहें ? बुद्धिका दिवालिया पन शायद इसीको कहते हैं. अगर डॉ. सत्यप्रकाश ने १९३७ में ही अग्निहोत्र बता दिया था, तो श्रीजी और साहब ने झख मारने केलिए प्रतिज्ञा की थी ? यह किताब मेरे पास भी है और मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इसमें दो आहुतियों का अग्निहोत्र नहीं बताया गया है . आर्यसमाजके १६ आहुतियों के अग्निहोत्र पर वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है. यह अग्निहोत्र स्वामी दयानन्दजी ने "सत्यार्थ प्रकाश" नामक ग्रन्थमें सन १८७४ में बताया था,इसका श्रुतिपुनरुज्जीवन कार्यसे कोई सम्बन्ध नहीं है.उरनकरजी आपसे प्रार्थना है कि इस तरह के कमेंट करके श्रुति पुनरुज्जीवनका, श्रीजी का और साहबका अपमान मत कीजिये. What to say for those people who are not able to see or understand the simple difference between Tretagnivistar Agnihotra, Aryasamaji Agnihotra and Agnihotra revealed and described by Shri Saahab Ji under "Shruti Punarjeevan"? This is what we call a state of complete foolishness of a mind. If Dr. Satyaprakash has already given Agnihotra to people in 1937 then why Shriji and Sahab would take the oath in the first place. Even I have the book and I can confidently say that this book doesn't states about the Agnihotra with two offerings. In this book Dr. Satyaprakash wrote his scientific analysis on 16 offering Agnihotra of Arya Samaj. This Agnihotra was told by Swami Dayanandji in "Satyarth Prakash" in year 1874. It has no connection & relevance with Shruti Punarjeevan work.
Urankarji, this is my request you to please do not insult respected Shriji and Saahabji by giving "False Statements" and Comments which holds no relevance with the Truth.
By Shri Jayantji
Urankarji, this is my request you to please do not insult respected Shriji and Saahabji by giving "False Statements" and Comments which holds no relevance with the Truth.
By Shri Jayantji
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